श्राद्ध की पावन भूमि पर जीवन, श्रद्धा और मोक्ष का संगम
गयाजी में विश्वप्रसिद्ध पितृपक्ष मेले की शुरुआत रविवार से हो गई है। पहले ही दिन 50 हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने फल्गु नदी के तट पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। फल्गु नदी के तट पर तर्पण और श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। देशभर में 55 स्थानों को श्राद्ध कर्म के लिए महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन गया सर्वोपरि है। श्रद्धालु यहां काला तिल और फल्गु जल से तर्पण करते हैं और पितृऋण से मुक्ति की कामना करते हैं। जानिए, पितृपक्ष से जुड़ी 4 पौराणिक कहानियां
1.
स्वर्ग पहुंचकर भी अन्न से वंचित रहे कर्ण
महाभारत में वर्णित है कि महान योद्धा कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग में पहुंचे, लेकिन उन्हें भोजन नहीं मिला। इंद्रदेव ने कारण पूछा तो कहा कि जीवन भर उन्होंने अपने पितरों के लिए अन्नदान नहीं किया। कर्ण को पृथ्वी पर लौटकर अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण और अन्नदान करने का अवसर मिला। यही 16 दिन पितृपक्ष के रूप में मनाए जाते हैं। इस दौरान कर्ण ने अपने पूर्वजों के लिए पूरी विधि के साथ पिंडदान किया। यह कथा आज भी संतान को अपने पितृऋण की याद दिलाती है और उन्हें परंपराओं के अनुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए प्रेरित करती है।
2.
फल्गू नदी को माता सीता का अभिशाप
जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए गया आए, तब एक घटना घटी। राम और लक्ष्मण पिंडदान की सामग्री लाने नगर गए, जबकि माता सीता फल्गु नदी के पास रुकीं। तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय आ गया है। माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, ब्राह्मण और अक्षयवट को साक्षी मानकर बालू से पिंडदान किया। राम और लक्ष्मण लौटे तो माता सीता ने उन्हें बताया, लेकिन राम को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने चारों साक्षियों से पुष्टि मांगी। ब्राह्मण, नदी और गाय ने कहा कि पिंडदान नहीं हुआ। इस पर माता सीता ने क्रोधित होकर फल्गु नदी को श्राप दे दिया, जिससे यह नदी बालू से ढकी रह गई और इस कारण इसे पवित्र माना जाता है।
3.
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताए थे श्राद्ध के नियम
महाभारत में भी पितृ पक्ष का विस्तृत उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के महत्व और नियमों के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों का स्मरण करके श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और संतानों को आशीर्वाद देते हैं। भीष्म ने श्राद्ध की विधि समझाते हुए कहा कि सबसे पहले पिता के लिए पिंडदान करना चाहिए, उसके बाद दादा के लिए और फिर परदादा के लिए। प्रत्येक पिंडदान करते समय साधक को एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए और ‘सोमाय पितृमते स्वाहा’ का उच्चारण करना चाहिए।
4.
फल्गु नदी को माना जाता है पंचतीर्थ
फल्गु नदी को पंचतीर्थ माना जाता है। यह नदी अपने पवित्र जल और तटों के कारण मोक्ष स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। पिंडदान और तर्पण के दौरान श्रद्धालु नदी, गाय, ब्राह्मण और अक्षयवट को साक्षी मानते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, अर्पित भोजन दो दिव्य पितर – विश्वदेव और अग्निश्रवा – के माध्यम से पितरों तक पहुंचता है। पिंडदान के समय काला तिल और फल्गु जल का उपयोग किया जाता है। यह धार्मिक क्रिया पितरों की आत्मा को शांति देती है और संतान के पितृऋण से मुक्ति दिलाती है। यहां श्रद्धालु भावपूर्ण तर्पण और पिंडदान करते हैं।