
गिरिडीह/दिल्ली: कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग को लेकर नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर झारखंड, बंगाल और ओडिशा से पहुंचे समाज के हजारों महिला-पुरुषों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान आयोजित सभा को संबोधित करते हुए टोटेमिक कुड़मी/कुरमी (महतो) समाज के अध्यक्ष शीतल ओहदार के अध्यक्ष न कहा कि सरकार ने हमारी मांग नहीं मांगी तो हम संपूर्ण झारखंड से खनिज के परिवहन को रोकने और बेमियादी चक्का जाम करने को मजबूर होंगे।
धरना प्रदर्शन के माध्यम से कुड़मी समाज ने दो मुख्य मांगें रखीं: कुड़मियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करना और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ना। पश्चिम बंगाल के केंद्रीय अध्यक्ष राजेश महतो और उड़ीसा आदिवासी कुड़मी सेना के केंद्रीय अध्यक्ष दिव्य सिंह महंता भी कार्यक्रम में मौजूद थे।
शीतल ओहदार ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि कुड़मियों के साथ पिछले 75 वर्षों से अन्याय हुआ है। उन्होंने याद दिलाया कि 6 सितंबर 1950 को कार्पोरेट घरानों के दबाव में उन्हें जनजाति के अधिकारों से वंचित कर पिछड़ी जाति की श्रेणी में रखा गया।
ओहदार ने कहा कि स्वतंत्रता से पहले कुड़मियों को 1901 एवं 1911 की जनगणना में “एबोरिजिनल ट्राईब”, 1921 में “एनीमिस्ट ट्राईब” और 1931 में “प्रिमिटिव ट्राइब” की श्रेणी में शामिल किया गया था। लेकिन आजादी के बाद खनिज संपदा को लेकर पूंजीपतियों और तत्कालीन नेताओं की मिलीभगत से उन्हें शेड्यूल ट्राइब की सूची से बाहर रखा गया।
ओडिशा के दिव्य सिंह महंता ने कहा कि 1931 की जनगणना में प्रिमिटिव ट्राइब की सूची में शामिल जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति घोषित किया जा सकता है।
राजेश महतो ने कहा कि कुड़मी समाज को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा और ऐसे राजनैतिक दल का समर्थन करना होगा जो उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कराने का वचन दे।
धरना प्रदर्शन में महिला-पुरुष ने अपनी परंपरागत पोशाक पहनी और छऊ, झुमर व पैका नृत्य का प्रदर्शन कर अपनी संस्कृति और पहचान का परिचय दिया।